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1.
अगर भारतीय निर्यात पर अतिरिक्त शुल्क या जुर्माना लगाने की अमेरिकी धमकियों से बचने के लिए भारत, रूस से कच्चे तेल का आयात बंद करता है, तो देश का वार्षिक तेल आयात बिल 9-11 अरब अमेरिकी डालर तक बढ़ सकता है। विश्लेषकों ने यह अनुमान जताया है।
2.
दिल्ली में वायु प्रदूषण गंभीर समस्या है। इससे निपटने के लिए सरकार ने कुछ समय पहले पुराने वाहनों को सड़क से हटाने का फैसला किया, लेकिन बाद में जनता के दबाव में उसे अपने कदम वापस खींचने पड़े। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के वर्ष 2015 के फैसले के तहत, पेट्रोल वाहनों को पंद्रह वर्ष और डीजल वाहनों को दस वर्ष की अवधि के बाद सड़क से हटाना अनिवार्य है। इसका उद्देश्य पुराने वाहनों को (जो शायद सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण फैलाते हैं) सड़कों से हटाना और हवा की गुणवत्ता में सुधार करना है। मगर 'पुराने वाहन' क्या वाकई सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं? क्या यह नीति वास्तव में पर्यावरण के लिए प्रभावी रूप में फायदेमंद है? क्या यह नीति पृथ्वी के सीमित संसाधनों और सतत् विकास के दीर्घकालीन लक्ष्य को ध्यान में रखती है ? दरअसल, इस संदर्भ में कई सवाल अभी जवाब की प्रतीक्षा में हैं। ऐसे में इस पक्ष पर विचार महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि यातायात से प्रदूषण कम करने के लिए क्या वाहनों की 'उम्र' सबसे कारगर तरीका है या फिर वाहनों से असल में होने वाले प्रदूषण या वाहन द्वारा तय की गई दूरी जैसे प्रभावी मानदंड जल्दबाजी में छूट गए हैं ? दिल्ली में पुराने वाहनों को सड़क से हटाने की नीति (वाहन स्क्रैप नीति), मोटर वाहन अधिनियम 1988 (धारा 59) और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देशों पर आधारित है। इसके पीछे तर्क यह है कि पुराने वाहन, जो शुरुआती उत्सर्जन मानकों (जैसे 'प्री-भारत स्टेज' या प्रारंभिक बीएस माडल; बीएस-एक या बीएस-दो) के हिसाब से बने हैं, वे नए वाहनों (बीएस-छह मानक) की तुलना में कहीं अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। उदाहरण के लिए, बीएस-एक डीजल कार बीएस-छह कार की तुलना में 31 गुना तक अधिक सूक्ष्म कण हवा में उत्सर्जित करती है। यह नीति वाहनों की उम्र को एकमात्र सरल मानदंड मान ले रही है, क्योंकि वाहनों के पंजीकरण रेकार्ड आसानी से उपलब्ध होते हैं और इसके लिए जटिल परीक्षण की जरूरत नहीं पड़ती।
3.
संसार की नित्य गतिशीलता ही उसका वास्तविक सौंदर्य है। यहां ठहराव मृत्यु का दूसरा नाम है, जबकि परिवर्तन जीवन की अनिवार्य शर्त। समय की नदी किसी के लिए नहीं थमती और जो इसके प्रवाह में अपने अस्तित्व को ढाल लेता है, वही जीवन के किनारों पर आशा के दीप जला पाता है। जीवन कोई जड़ प्रतिमा नहीं है, जिसे एक ही आकार में पूज लिया जाए। वह तो एक निरंतर तराशती हुई प्रक्रिया है, जिसमें बदलाव ही उसकी आत्मा है। मनुष्य जब अपने भीतर परिवर्तन की ज्योति जलाता है, तब वह अंधकारमय जड़ताओं से निकलकर संभावनाओं के उजास में प्रवेश करता है। इतिहास गवाह है कि चाहे वह ऋषियों की साधना हो या वैज्ञानिकों की खोज, समाज सुधारकों की लड़ाई हो या राष्ट्रों का पुनर्जागरण-हर उत्कर्ष के मूल में स्वयं में लाया गया परिवर्तन ही रहा है। कहा गया है कि 'जो स्वयं में बदलाव लाता है, वही अपना अस्तित्व बचा पाता है।' यह केवल एक सूक्ति नहीं, बल्कि जीवन का सुसंस्कृत दर्शन है, जो हमें समय, समाज और स्वयं से संवाद करते हुए निरंतर विकसित होने की प्रेरणा देता है। यह विचार केवल जीवित रहने की नहीं, बल्कि जीवंत बने रहने की पुकार है। वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, जहां परिवर्तन की गति अत्यंत तीव्र है, वहां यह विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
4.
भारतीय दर्शन में धर्म की अवधारणा अत्यंत व्यापक, गहन और जीवन के प्रत्येक पहलू को छूने वाली है। महाभारत में वर्णित है कि आरंभिक काल में अर्थात कृतयुग में न कोई राजा था और न ही कोई दंड-विधान। तब मानव स्वभावतः धर्माचरण ही करता था, लेकिन कालांतर में मोह, मत्सर और स्वार्थ जैसी प्रवृत्तियों ने मनुष्य में प्रवेश किया। इससे धर्म का ह्रास होने लगा। तब धर्म को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने एक विशाल ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से संबंधित एक लाख अध्याय थे। इस महाग्रंथ को बाद के युगों में विभिन्न ऋषियों और देवताओं ने संक्षिप्त किया, ताकि वह अधिक सुलभ हो सके और लोक व्यवहार में उतारा जा सके। इन ग्रंथों से ही धर्म की वास्तविक जानकारी होती है। ये वेदानुकूल ग्रंथ ही धर्म के प्रतिपादक हैं। इनसे संकेत मिलता है कि वैदिक सनातन परंपरा में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के चार आधार स्तंभ माने गए हैं, जिनका मूल एक ही था मानव का कल्याण।
5.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) बुधवार को अपनी आगामी द्विमासिक मौद्रिक नीति में प्रमुख अल्पकालिक उधारी दर को लगातार तीन कटौतियों के बाद 5.5 फीसद पर यथावत रख सकता है। विशेषज्ञों का यह कहना है। हालांकि, अमेरिका में शुल्क की बढ़ती अनिश्चितताओं और महंगाई दर के कम होते रुझानों के मद्देनजर निकट भविष्य में आर्थिक वृद्धि के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां हैं। दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्रीय बैंक दरों में एक और कटौती कर सकता है क्योंकि वृद्धि के दृष्टिकोण के लिए चुनौतियां संभावित महंगाई दर जोखिमों से ज्यादा हैं।
6.
उद्योग जगत ने अनुमान जताया है कि भारत का सेमीकंडक्टर बाजार वर्ष 2030 तक दोगुने से भी अधिक होकर 100-110 अरब डालर के दायरे में पहुंच जाएगा। रविवार को एक आधिकारिक बयान में यह कहा गया। उद्योग के अनुमानों का हवाला देते हुए बयान में कहा गया है कि भारतीय सेमीकंडक्टर बाजार 2024-2025 में लगभग 45-50 अरब डालर का था, जबकि 2023 में यह 38 अरब डालर का था।
7.
सहकारिता सहकारिता मंत्री अमित शाह ने पिछले महीने इस क्षेत्र के लिए एक व्यापक सहकारी नीति का अनावरण करते हुए संकेत दिया था कि 2025 के अंत तक एक सहकारी टैक्सी सेवा शुरू की जाएगी। एनसीडीसी के उप प्रबंध निदेशक रोहित गुप्ता ने एजंसी को बताया कि मुख्य उद्देश्य ड्राइवरों को बेहतर रिटर्न सुनिश्चित करना और यात्रियों को गुणवत्तापूर्ण, सुरक्षित और किफायती सेवाएं प्रदान करना है। ाह उद्यम बिना किसी सरकारी हिस्सेदारी के संचालित होता है और पूरी तरह से सहभागी सहकारी समितियों द्वारा वित्त पोषित है।
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