हर साल 23 मई को विश्व कछुआ दिवस (World Turtle Day) मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को कछुओं और कछुए जैसी प्रजातियों के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है। यह दिवस हमें यह याद दिलाता है कि कछुए करोड़ों वर्षों से धरती पर हैं, लेकिन आज मानवीय गतिविधियों, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण उनका अस्तित्व संकट में है।
इतिहास और शुरुआत
World Turtle Day की शुरुआत अमेरिकन टॉरटॉइज़ रेस्क्यू (American Tortoise Rescue – ATR) नामक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा वर्ष 2000 में की गई थी। यह संगठन 1990 से कछुओं के संरक्षण और पुनर्वास का कार्य कर रहा है। ATR का उद्देश्य कछुओं को अवैध व्यापार और पालतू जानवर बनाए जाने से बचाना है।
इस दिवस का उद्देश्य
- कछुओं और उनके आवासों की रक्षा करना
- अवैध व्यापार और शिकार के विरुद्ध आवाज़ उठाना
- लोगों को कछुओं के पारिस्थितिकीय महत्व के बारे में जागरूक करना
- कछुओं को पालतू जानवर के रूप में रखने से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी देना
कछुओं का प्राकृतिक आवास (Habitats)
विभिन्न कछुआ प्रजातियों के अलग-अलग प्राकृतिक आवास होते हैं। कुछ प्रमुख उदाहरण:
- कोरल ट्रायंगल क्षेत्र — यह समुद्री क्षेत्र इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी, और कैरिबियन के मेसोअमेरिकन रीफ तक फैला हुआ है। यहाँ कई प्रकार के समुद्री कछुए पाए जाते हैं।
- गुल्फ ऑफ कैलिफोर्निया — यह भी समुद्री कछुओं के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
- रोटी द्वीप (Roti Island) — यह इंडोनेशिया का एक छोटा सा द्वीप है (लगभग 161 वर्ग किलोमीटर), जहाँ केवल स्नेक-नेक्ड कछुए (Snake-necked turtles) पाए जाते हैं।
(यह जानकारी सैन डिएगो चिड़ियाघर द्वारा दी गई है।)
कछुओं का जीवन चक्र और प्रजनन प्रक्रिया
- प्रजनन काल
- अधिकांश कछुओं का प्रजनन काल मार्च से जून के बीच होता है। समुद्री कछुए, विशेष रूप से मादा कछुए, हर 2–4 वर्षों में एक बार प्रजनन के लिए तट पर लौटते हैं।
- अंडे देने की प्रक्रिया
- मादा कछुए रात के समय तट पर आकर रेत में गड्ढा खोदकर एक बार में 50 से 150 अंडे देती हैं।
- एक मौसम में एक मादा कई बार अंडे दे सकती है।
- अंडों से बच्चे निकलने में आमतौर पर 45 से 70 दिन लगते हैं।
- रोचक तथ्य: अंडों का तापमान उनके लिंग को निर्धारित करता है। उच्च तापमान पर मादा और कम तापमान पर नर कछुए जन्म लेते हैं।
भारत में कछुओं की स्थिति
- भारत में कछुओं की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें कई संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय (Endangered) श्रेणी में हैं।
- अवैध व्यापार, पर्यावरण प्रदूषण, आवास विनाश, और जलवायु परिवर्तन इनकी घटती संख्या के प्रमुख कारण हैं।
ओडिशा में ऑलिव रिडले कछुओं का चमत्कारिक मेला
हर साल भारत के ओडिशा राज्य में समुद्र तटों पर एक अद्भुत प्राकृतिक घटना घटित होती है, जब लाखों की संख्या में ऑलिव रिडले समुद्री कछुए (Olive Ridley Turtles) प्रजनन के लिए आते हैं।
- प्रमुख स्थान:
- गहिरमाथा समुद्री तट (Gahirmatha Beach)
- रूशिकुल्या तट (Rushikulya Beach)
- देवी नदी मुहाना (Devi River Mouth)
- एरिबाडा (Arribada) — सामूहिक आगमन: फरवरी से अप्रैल के बीच, ये कछुए एक साथ तटों पर आकर अंडे देते हैं। इस प्रक्रिया को “एरिबाडा” कहा जाता है, जिसमें लाखों मादा कछुए एक ही समय में तटों पर अंडे देने आती हैं।
अंडे और हैचिंग प्रक्रिया
- एक मादा एक बार में 100 से ज्यादा अंडे देती है।
- कुल मिलाकर करोड़ों अंडे इन तटों पर देखे जा सकते हैं।
- लगभग 45–60 दिनों में अंडों से बच्चे निकलते हैं और समुद्र की ओर दौड़ते हैं।
संरक्षण के लिए प्रयास
- तटों को संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाता है।
- मछली पकड़ने पर प्रतिबंध, रात में रोशनी कम करना, और सुरक्षा दलों की तैनाती होती है।
- ओडिशा वन विभाग, भारतीय नौसेना, और कई NGOs मिलकर इस प्रक्रिया को संरक्षित करते हैं।
पारिस्थितिकीय महत्व
- कछुए समुद्री घास और प्रवाल भित्तियों को साफ रखते हैं।
- वे बीज फैलाते हैं और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।
मनुष्यों के लिए कछुए क्यों महत्वपूर्ण हैं?
कई तटीय समुदायों के लिए कछुए सिर्फ जीव नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा का हिस्सा हैं।
विशेष रूप से समुद्री कछुए कई आदिवासी और पारंपरिक समुदायों द्वारा पूजनीय माने जाते हैं — उन्हें पूर्वजों का रूप या शुभ प्रतीक माना जाता है।
इसके अलावा, “टर्टल वॉचिंग ईको-टूरिज्म” (Turtle Watching Ecotourism) यानी कछुओं को प्राकृतिक रूप से देखने के पर्यटन से तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अच्छा खासा रोजगार और आमदनी मिलती है।
एक शोध के अनुसार, जीवित कछुए पर्यटन के माध्यम से उन उत्पादों की तुलना में अधिक आर्थिक लाभ पहुंचा सकते हैं, जो उनकी हत्या से प्राप्त होते हैं — जैसे उनके अंडे, मांस या खोल।
इसलिए कछुए जीवित रहने पर अधिक मूल्यवान हैं, न कि मृत।
खतरों की सूची
खतरा | विवरण |
प्लास्टिक प्रदूषण | प्लास्टिक खाने से कछुओं की मृत्यु हो जाती है। |
अवैध शिकार | मांस, अंडों, और कवच के लिए किया जाता है। |
समुद्र तटों का अतिक्रमण | आवास नष्ट होने से कछुए अंडे नहीं दे पाते। |
जलवायु परिवर्तन | तापमान और समुद्री स्तर में वृद्धि से अंडों का लिंग निर्धारण और जीवन चक्र प्रभावित होता है। |
संरक्षण के उपाय
- प्लास्टिक का उपयोग कम करें और समुद्र तटों को साफ रखें।
- कछुओं को पालतू जानवर के रूप में न पालें।
- घायल कछुओं को वन विभाग को सूचित करें।
- जागरूकता अभियान चलाएं और बच्चों को शिक्षित करें।
कछुओं की आदतें (Habits)
- कछुए सामाजिक जीव नहीं होते। वे पास में अन्य कछुओं की उपस्थिति से परेशान नहीं होते, लेकिन अधिक मेलजोल भी नहीं रखते।
- अधिकांश कछुए दिन के समय सक्रिय रहते हैं और भोजन की तलाश में घूमते हैं।
- यह धारणा गलत है कि कछुए पूरी तरह शांत होते हैं।
- वे विभिन्न प्रकार की आवाज़ें निकालते हैं —
- कुछ की आवाज़ इलेक्ट्रिक मोटर जैसी होती है,
- कुछ डकारने (belching) जैसी आवाजें निकालते हैं,
- और कुछ तो कुत्तों की तरह भौंकते भी हैं।
- दक्षिण अमेरिका का रेड-फुटेड टॉर्टॉइस (Red-Footed Tortoise) मुर्गी जैसी “क्लकिंग” आवाज़ निकालता है।
पर्यटन और जन-जागरूकता
हर साल देश-विदेश से पर्यटक इस अनोखी प्राकृतिक घटना को देखने आते हैं।
इससे स्थानीय लोगों में संरक्षण के प्रति भावना बढ़ती है और उन्हें रोजगार के अवसर भी मिलते हैं।
निष्कर्ष
विश्व कछुआ दिवस हमें इस बात की याद दिलाता है कि कछुए न केवल हमारे पर्यावरण के लिए आवश्यक हैं, बल्कि वे प्रकृति के संतुलन का प्रतीक भी हैं।
ओडिशा के तटों पर हर साल घटने वाली एरिबाडा जैसी घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि जब मनुष्य और प्रकृति साथ मिलकर काम करें, तो चमत्कार संभव हैं।
हमें मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन अद्भुत जीवों को जीवित और सुरक्षित देख सकें।