हर वर्ष 29 मई को अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस (International Everest Day) मनाया जाता है, जो पर्वतारोहण के इतिहास में एक अविस्मरणीय उपलब्धि की स्मृति में समर्पित है। यह दिन नेपाल के तेनजिंग नोर्गे और न्यूज़ीलैंड के सर एडमंड हिलारी को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने वर्ष 1953 में दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को पहली बार सफलतापूर्वक फतह किया था। यह उपलब्धि मानव साहस और दृढ़ संकल्प की प्रतीक बन गई, जिसने आने वाली पीढ़ियों के पर्वतारोहियों को प्रेरणा दी।

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस का इतिहास

माउंट एवरेस्ट, जो नेपाल और चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित है, केवल एक पर्वत नहीं बल्कि मानव साहस और संकल्प का प्रतीक बन चुका है। इसे अलग-अलग भाषाओं और संस्कृतियों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। नेपाली में इसे “सागरमाथा” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “नीले आकाश में सिर”। तिब्बती भाषा में इसका नाम “चोमोलुंगमा” है, जिसका अर्थ होता है “दुनिया की माँ”। अंग्रेज़ी नाम “एवरेस्ट” ब्रिटिश भारत के सर्वेयर जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा गया था।

शुरुआती प्रयास और ऐतिहासिक सफलता

एवरेस्ट पर चढ़ाई के प्रयास 1920 के दशक में शुरू हुए, जब ब्रिटिश अभियानों ने इसे फतह करने की कोशिश की। कई पर्वतारोही चोटी के करीब तक पहुँचे, लेकिन अंतिम सफलता 1953 में नौवें ब्रिटिश अभियान के दौरान मिली, जब 29 मई को सुबह 11:30 बजे नेपाल के तेनजिंग नोर्गे और न्यूज़ीलैंड के सर एडमंड हिलारी ने पहली बार चोटी पर कदम रखा और इतिहास रच दिया।

हालाँकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ब्रिटिश पर्वतारोही जॉर्ज मैलोरी और एंड्रयू इरविन ने 1924 में एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचने की कोशिश की थी, लेकिन वे लापता हो गए और यह आज तक रहस्य बना हुआ है कि वे चोटी तक पहुँचे थे या नहीं। मैलोरी का शव 1999 में मिला था, लेकिन कोई पक्के प्रमाण नहीं मिले।

इसलिए, नोर्गे और हिलारी को एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचने वाले पहले आधिकारिक पर्वतारोही माना जाता है।

एक परंपरा की शुरुआत

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस की शुरुआत वर्ष 2008 में हुई, जब एडमंड हिलारी का निधन हुआ। इसके बाद नेपाल सरकार ने 29 मई को आधिकारिक रूप से “एवरेस्ट दिवस” घोषित किया। तब से हर साल यह दिन न केवल पर्वतारोहण की उस ऐतिहासिक उपलब्धि की याद दिलाता है, बल्कि यह मानव की असीम क्षमता, धैर्य और खोज की भावना का उत्सव भी बन गया है।

माउंट एवरेस्ट: एक चुनौतीपूर्ण शिखर

माउंट एवरेस्ट, जिसकी ऊंचाई 8,849 मीटर (29,032 फीट) है, पृथ्वी की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है। यह चोटी हमेशा से दुनिया भर के साहसी पर्वतारोहियों को आकर्षित करती रही है। इसकी कठिन परिस्थितियाँ, बर्फीली हवाएँ और ऑक्सीजन की कमी इसे एक अद्वितीय चुनौती बनाते हैं, जिसे पार करना किसी भी व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक क्षमता की पराकाष्ठा का प्रमाण होता है।

एवरेस्ट: श्रद्धा और संस्कृति का प्रतीक

एवरेस्ट न केवल एक प्राकृतिक संरचना है, बल्कि नेपाल और शेरपा संस्कृति में एक पवित्र स्थल के रूप में भी माना जाता है। शेरपा समुदाय इस पर्वत को “चोमोलुंगमा” यानी “दुनिया की माँ” मानते हैं और हर चढ़ाई से पहले पूजा (Puja Ceremony) करते हैं। यह परंपरा पर्वत को सम्मान देने और सुरक्षित यात्रा की प्रार्थना के रूप में निभाई जाती है। शेरपा समुदाय पर्वत की साफ-सफाई और पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। वे अक्सर पर्वत पर फैले कचरे को साफ करते हैं ताकि इसकी सुंदरता और पवित्रता बनी रहे।

एक प्रेरणादायक विरासत

तेनजिंग और हिलारी की सफलता के बाद दुनिया भर से हजारों पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास किया और अनेक ने सफलता भी पाई। हर वर्ष यह दिन साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक बनकर लोगों को प्रेरित करता है कि कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं, अगर संकल्प मजबूत हो।

एवरेस्ट पर चढ़ाई: एक कठिन और महँगी चुनौती

8,849 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एवरेस्ट पृथ्वी की सबसे ऊँची चोटी है। यहाँ चढ़ाई करना एक साहसिक कार्य है जिसमें अनेक चुनौतियाँ शामिल हैं:

  • कम ऑक्सीजन स्तर: समुद्र तल की तुलना में चोटी पर वायु-दाब केवल एक-तिहाई होता है, जिससे साँस लेना मुश्किल हो जाता है। पर्वतारोही अक्सर पूरक ऑक्सीजन सिलिंडर का उपयोग करते हैं।
  • खतरनाक मौसम: यहाँ का मौसम बहुत कठोर होता है। बर्फ़ीले तूफान, हिमस्खलन, तेज़ हवाएँ और अत्यधिक ठंड फ्रॉस्टबाइट जैसी स्थितियाँ पैदा कर सकती हैं।
  • खुम्बू आइसफॉल (Khumbu Icefall): यह क्षेत्र अत्यंत जोखिम भरा है, जहाँ गहरी दरारें और अस्थिर बर्फीले टुकड़े होते हैं।
  • भीड़ और इंतज़ार: हाल के वर्षों में एवरेस्ट की लोकप्रियता के कारण चोटी के पास लंबी कतारें लगती हैं, जिससे पर्वतारोही लंबे समय तक ऑक्सीजन की कमी में फँस जाते हैं।
  • मौत का जोखिम: अब तक 300 से अधिक लोग एवरेस्ट पर चढ़ाई करते समय अपनी जान गंवा चुके हैं। 1996 में बर्फ़ीले तूफान में 8 लोग मारे गए थे, वहीं 2014 और 2015 में हिमस्खलनों से भी कई जानें गईं।

उत्सव और आयोजन

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस 2025 के अवसर पर दुनिया भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे – जिनमें प्रदर्शनी, संगोष्ठियाँ, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, रैलियाँ और साहसिक खेल शामिल हैं। नेपाल में विशेष रूप से इस दिन को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, जहाँ पर्वतारोहियों, पर्यटकों और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी रहती है।

प्रकृति की रक्षा की आवश्यकता

जहाँ एक ओर हम इस अद्भुत उपलब्धि का जश्न मनाते हैं, वहीं दूसरी ओर यह भी आवश्यक है कि माउंट एवरेस्ट और उसके आसपास के नाजुक पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा की जाए। बढ़ते पर्यटन और पर्वतारोहण गतिविधियों से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए, सतत पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना समय की आवश्यकता है।

चढ़ाई की लागत और मार्गदर्शकों की भूमिका

एवरेस्ट पर चढ़ाई कोई सस्ती प्रक्रिया नहीं है। अनुभवी गाइड और पर्वतारोहण सेवाओं की लागत $30,000 से $200,000 तक हो सकती है। अधिकांश पर्वतारोही अप्रैल-मई के बीच के सात से दस दिन के मौसम खिड़की में चढ़ाई करने का प्रयास करते हैं, जब मौसम सबसे अनुकूल होता है।

निष्कर्ष

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस हमें यह याद दिलाता है कि मानव इच्छाशक्ति और प्रयासों की कोई सीमा नहीं होती। तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलारी की ऐतिहासिक उपलब्धि न केवल पर्वतारोहण की दुनिया में मील का पत्थर है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो अपने जीवन में ऊँचाइयों को छूना चाहता है। यह दिन हमें सपने देखने, संघर्ष करने और उन्हें साकार करने की प्रेरणा देता है।

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