अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस क्या है?

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस हर साल 29 जुलाई को मनाया जाता है ताकि बाघों के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता लाई जा सके। यह दिन पहली बार 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में घोषित किया गया था, जहां 13 देशों ने मिलकर बाघों की घटती संख्या को रोकने का संकल्प लिया था। तभी से यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमें इस अद्भुत प्राणी और इसके प्राकृतिक आवास को बचाने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।

बाघों का महत्व – केवल ताकत का प्रतीक नहीं

बाघ केवल शक्ति, साहस और शान के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि ये हमारे वन पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ भी हैं। एक शीर्ष शिकारी होने के कारण, बाघ जंगलों में शिकार की आबादी को संतुलित रखते हैं, जिससे जैव विविधता बनी रहती है। जहां बाघ हैं, वहां स्वस्थ जंगल हैं।

भारत जैसे देशों में बाघों का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। भारत में दुनिया की लगभग 75% बाघ आबादी पाई जाती है।

वास्तविकता – संकट में हैं बाघ

100 साल पहले एशिया में लगभग 1 लाख बाघ थे। आज उनकी संख्या घटकर 4,000 से भी कम रह गई है। इनमें से कई उप-प्रजातियां जैसे कि जावा, बाली और कैस्पियन बाघ विलुप्त हो चुकी हैं।

बाघों की घटती संख्या के मुख्य कारण हैं:

  • शिकार और अवैध व्यापार
  • वनों की कटाई और आवास का नाश
  • मानव-बाघ संघर्ष
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

बाघों के शरीर के अंगों का उपयोग पारंपरिक दवाओं और सजावट के लिए किया जाता है, जिससे उनका अवैध शिकार तेजी से बढ़ा है।

वैश्विक प्रयास – बाघों को बचाने के लिए एकजुटता

ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिव (GTI) 2008 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करना था – जिसे TX2 लक्ष्य कहा गया। हालांकि समय सीमा पार हो चुकी है, लेकिन कई देशों ने सराहनीय प्रगति की है:

  • भारत में Project Tiger, टाइगर रिज़र्व, और ईको सेंसिटिव ज़ोन के ज़रिए संरक्षण को बढ़ावा मिला है।
  • नेपाल और भूटान ने सामुदायिक संरक्षण के ज़रिए बाघों की संख्या बढ़ाई है।
  • रूस और चीन में भी बाघों के लिए हैबिटैट कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं।

भारत की भूमिका – बाघों का सबसे बड़ा घर

भारत में 3,000 से अधिक बाघ हैं और यह बाघों की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। भारत का Project Tiger (1973) विश्व के सबसे सफल संरक्षण कार्यक्रमों में से एक है।

मुख्य उपलब्धियां:

  • कैमरा ट्रैप और ड्रोन के माध्यम से निगरानी।
  • बफर ज़ोन का निर्माण ताकि बाघों और इंसानों के बीच दूरी बनी रहे।
  • ईको टूरिज्म को बढ़ावा देना ताकि स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ मिले।
  • टाइगर सेन्सस हर चार साल में कराना।

2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाता है।

बचे हैं कई खतरे – अभी भी है संघर्ष जारी

हालांकि उपलब्धियां हैं, लेकिन कई चुनौतियां भी हैं:

  • जंगलों का खंडन जिससे बाघों की आवाजाही बाधित होती है।
  • मानव-पशु संघर्ष बढ़ता जा रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से सुंदरबन क्षेत्र में गंभीर प्रभाव डाल रहा है।
  • अवैध कटाई और खनन से पर्यावरण को नुकसान होता है।

स्थानीय समुदायों को शामिल किए बिना स्थायी संरक्षण संभव नहीं है।

हम क्या कर सकते हैं – छोटी पहल, बड़ा असर

हर व्यक्ति बाघों को बचाने में योगदान दे सकता है:

  • बाघों की आवश्यकता और महत्व के बारे में जानकारी फैलाएं।
  • वन्य जीवों से बने उत्पादों का उपयोग न करें।
  • प्राकृतिक टूरिज्म को अपनाएं जो संरक्षण को प्रोत्साहित करता है।
  • विश्वसनीय NGOs को समर्थन दें।
  • वनों की कटाई और प्रदूषण के खिलाफ आवाज़ उठाएं।

बच्चों को बचपन से ही बाघों और पर्यावरण के महत्व के बारे में सिखाना आवश्यक है।

भविष्य – जंगल में फिर गूंजे दहाड़

बाघों को बचाना केवल एक प्रजाति को संरक्षित करना नहीं है, यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने का कार्य है। अगर सरकारें, NGOs, वैज्ञानिक और आम लोग मिलकर काम करें, तो बाघों की आबादी फिर से बढ़ सकती है।

हमारे सामूहिक प्रयासों से एक ऐसा भविष्य संभव है जहां जंगल फिर से जीवंत होंगे और बाघों की गूंज सुनाई देगी।

इस अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर, आइए संकल्प लें कि हम इस शानदार जीव की रक्षा करेंगे। आने वाली पीढ़ियों को एक ऐसा विश्व देंगे जहां बाघ जंगलों के राजा बने रहें।

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