महावीर जयंती जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह जैन समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान महावीर ने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय के सिद्धांतों का प्रचार किया, जो आज भी मानव समाज के लिए प्रेरणादायक हैं।

भगवान महावीर का जीवन परिचय

  1. जन्म और प्रारंभिक जीवन: भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व, चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को बिहार के कुंडलग्राम (वैशाली) में हुआ था। उनका जन्म नाम वर्धमान था। वे क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। उनका पालन-पोषण राजसी माहौल में हुआ, लेकिन वे बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे।
  2. संन्यास ग्रहण: 30 वर्ष की आयु में, वर्धमान ने सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यास ले लिया। उन्होंने बारह वर्षों तक कठिन तपस्या की और आत्मज्ञान प्राप्त किया। इस दौरान उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन अहिंसा और धैर्य के मार्ग पर डटे रहे।
  3. कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति: 12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद, भगवान महावीर को ऋजुपालिका नदी के किनारे ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद वे ‘कवलीन’ (सर्वज्ञ) कहलाए और उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया।
  4. निर्वाण (मोक्ष प्राप्ति): भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन निर्वाण प्राप्त किया। इस दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

प्रमुख उपदेश

भगवान महावीर ने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय के सिद्धांतों पर जोर दिया। उनके ये उपदेश जैन धर्म के मूलभूत आधार हैं।

  1. अहिंसा (अहिंसा परमो धर्म): भगवान महावीर का सबसे महत्वपूर्ण संदेश अहिंसा था। उन्होंने कहा कि किसी भी जीव को शारीरिक या मानसिक रूप से कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए। उनका मानना था कि सभी जीवों में आत्मा होती है और हमें हर जीव के प्रति करुणा रखनी चाहिए।
  2. सत्य (सत्य ही ईश्वर है): भगवान महावीर ने कहा कि सत्य को अपनाना ही सच्ची भक्ति है। झूठ बोलना केवल दूसरों को ही नहीं, बल्कि स्वयं को भी धोखा देने के समान है।
  3. अपरिग्रह (संपत्ति का त्याग): उन्होंने सांसारिक वस्तुओं से मोह त्यागने पर बल दिया। मनुष्य को अपनी इच्छाओं और भौतिक सुख-सुविधाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।
  4. ब्रह्मचर्य (इन्द्रिय संयम): ब्रह्मचर्य का अर्थ है अपने विचारों, शब्दों और कर्मों में संयम रखना। भगवान महावीर ने इसे आत्मशुद्धि का महत्वपूर्ण मार्ग बताया।
  5. अस्तेय (चोरी न करना): उन्होंने कहा कि हमें कभी भी दूसरों की वस्तु या अधिकार का हनन नहीं करना चाहिए। दूसरों की संपत्ति को बिना अनुमति लेना भी चोरी के समान है।

महावीर जयंती का महत्व और उत्सव

  1. तिथि और समय: महावीर जयंती हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन मनाई जाती है। यह दिन भगवान महावीर के जन्मदिवस के रूप में जैन समुदाय द्वारा श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
  2. पूजा और अनुष्ठान: इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान महावीर की प्रतिमा को स्नान कराकर उनका विशेष श्रृंगार किया जाता है। उपदेशों का पाठ किया जाता है और प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं।
  3. दान और सेवा कार्य: महावीर जयंती के अवसर पर जैन समुदाय द्वारा विभिन्न सेवा कार्य किए जाते हैं। गरीबों को भोजन, वस्त्र और दवाइयां वितरित की जाती हैं। अहिंसा और शाकाहार के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  4. शांतिपूर्ण रैलियां और उपदेश: महावीर जयंती के दिन जैन अनुयायी शांतिपूर्ण रैलियां निकालते हैं और भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रचार करते हैं। इस दौरान धार्मिक प्रवचन भी होते हैं, जिनमें अहिंसा, करुणा और सत्य पर जोर दिया जाता है।

भगवान महावीर की शिक्षाएं और आधुनिक समाज

आज के समय में भगवान महावीर की शिक्षाएं पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। हिंसा, लालच और झूठ से भरी दुनिया में उनके सिद्धांत मानवता के कल्याण के लिए आवश्यक हैं। अहिंसा और सत्य का पालन कर हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। उनकी शिक्षाएं हमें आत्मसंयम, सह-अस्तित्व और दयाभाव सिखाती हैं।

निष्कर्ष

महावीर जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भगवान महावीर के विचारों को आत्मसात करने का अवसर है। उन्होंने हमें प्रेम, करुणा, अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। यदि हम उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएं, तो यह संसार अधिक शांतिपूर्ण और समृद्ध हो सकता है। भगवान महावीर के उपदेश न केवल जैन समुदाय के लिए, बल्कि पूरी मानव जाति के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

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