लोकतंत्र को मज़बूती देने वाले तीन प्रमुख स्तंभ होते हैं — विधायिका (Legislature), कार्यपालिका (Executive) और न्यायपालिका (Judiciary)। इन तीनों का संतुलित संचालन ही किसी देश में सुशासन सुनिश्चित करता है। इनमें से विधायिका सबसे मूलभूत और पहला स्तंभ है, क्योंकि यह कानून निर्माण के साथ-साथ जनता और सरकार के बीच सेतु का काम करती है।

विधायिका का अर्थ और परिभाषा

‘विधायिका’ शब्द संस्कृत के दो भागों से बना है — ‘विधि’ (कानून) और ‘आयिका’ (बनाने वाली संस्था)। इस प्रकार विधायिका का शाब्दिक अर्थ हुआ — कानून बनाने वाली संस्था।

यह किसी भी देश के संविधान के अनुसार कार्य करती है और यह नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों और जीवन से जुड़े कानूनों का निर्माण करती है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि संसद या विधानसभा के माध्यम से कानून बनाते हैं और जनहित में निर्णय लेते हैं।

विधायिका की आवश्यकता क्यों है?

यह आवश्यक है क्योंकि:

  • यह जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को एक मंच देती है।
  • यह तय करती है कि देश या राज्य को चलाने के लिए कौन-कौन से कानून जरूरी हैं।
  • यह सरकार की नीतियों और निर्णयों पर निगरानी रखती है।
  • यह जनता की आवाज़ को सरकार तक पहुंचाती है।

भारत में विधायिका की संरचना

1. केंद्र की विधायिका – भारतीय संसद

भारत की संसद द्विसदनीय व्यवस्था पर आधारित है और इसमें तीन घटक होते हैं:

  • लोकसभा (Lower House): आम जनता द्वारा सीधे चुने गए प्रतिनिधियों का सदन। इसे जनता की असली आवाज़ कहा जाता है।
  • राज्यसभा (Upper House): राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा गठित उच्च सदन। यह राज्य हितों की सुरक्षा करता है।
  • राष्ट्रपति: कानून को अंतिम मंजूरी देने वाले। इनके बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता।

2. राज्य की विधायिका

राज्य स्तर पर विधायिका दो प्रकार की हो सकती है:

  • विधानसभा (Legislative Assembly): लगभग सभी राज्यों में मौजूद। सीधे चुने गए सदस्य इसमें होते हैं।
  • विधानपरिषद (Legislative Council): कुछ राज्यों में मौजूद उच्च सदन। इसके सदस्य विभिन्न तरीकों से चुने जाते हैं।

विधायिका के प्रमुख कार्य

  1. कानून बनाना (Law Making): इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य है कानून बनाना, मौजूदा कानूनों में संशोधन करना और अनुपयुक्त कानूनों को समाप्त करना। यह कार्य विधेयक (Bill) के माध्यम से किया जाता है जिसे पारित करने पर वह कानून बन जाता है।
  2. बजट को पारित करना (Passing the Budget): हर वर्ष सरकार जो खर्च और आमदनी का खाका प्रस्तुत करती है, उसे मंजूरी देना विधायिका का अधिकार होता है। बिना इसकी अनुमति के सरकार एक रुपया भी खर्च नहीं कर सकती।
  3. कार्यपालिका पर निगरानी (Executive Oversight): प्रश्नकाल, शून्यकाल और संसदीय समितियों के माध्यम से विधायिका सरकार के कामकाज पर नज़र रखती है। अगर सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती, तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर उसे गिराया भी जा सकता है।
  4. जनता की आवाज़ उठाना: इसमें चुने गए प्रतिनिधि अपने निर्वाचन क्षेत्रों की समस्याओं को सदन में उठाते हैं जिससे सरकार को जनहित में निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  5. संविधान में संशोधन: संविधान में बदलाव की प्रक्रिया भी विधायिका द्वारा पूरी की जाती है। इसके लिए दोनों सदनों की सहमति आवश्यक होती है।

विधायिका के प्रकार

1. एकसदनीय विधायिका (Unicameral Legislature)

  • इस प्रणाली में सिर्फ एक ही सदन होता है, जैसे कि विधानसभा। उदाहरण के तौर पर — पंजाब, हरियाणा, राजस्थान आदि।
  • लाभ:
    • निर्णय प्रक्रिया तेज़ होती है।
    • खर्च कम होता है।
    • प्रक्रियाएँ सरल होती हैं।

2. द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislature)

  • इसमें दो सदन होते हैं — एक निचला और एक उच्च। भारत की संसद इसी प्रणाली का उदाहरण है।
  • लाभ:
    • कानूनों की बेहतर समीक्षा होती है।
    • विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिलता है।
    • लोकतंत्र मजबूत और संतुलित होता है।

विधायिका और कार्यपालिका में अंतर

बिंदुकार्यपालिकाविधायिका
कार्यकानून लागू करनाकानून बनाना
प्रमुखप्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रीसांसद, विधायक
भूमिकाप्रशासनिक संचालनजनप्रतिनिधित्व व नियंत्रण
सरकार पर नियंत्रणनहींहाँ

भारत की विधायिका की विशेषताएं

  • यह लोकतंत्र की आत्मा मानी जाती है।
  • इसमें जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि होते हैं।
  • यह कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाती है।
  • सरकार का बजट पारित करने का अधिकार इसी के पास है।
  • यह देश की नीतियों की दिशा तय करती है।
  • संविधान संशोधन का अधिकार इसी के पास होता है।
  • संसद की कार्यवाही सार्वजनिक होती है, जिससे पारदर्शिता बनी रहती है।

विधायिका की प्रमुख चुनौतियाँ

  • आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता चुने जाते हैं।
  • बिना पर्याप्त चर्चा के कानून पास हो जाते हैं।
  • महिलाओं, दलितों, आदिवासियों का कम प्रतिनिधित्व।
  • बार-बार संसद में हंगामा और कार्य में बाधा।
  • कार्यपालिका का बढ़ता हस्तक्षेप।

विधायिका में सुधार के उपाय

  • कानून बनाने की प्रक्रिया में सुधार।
  • निष्क्रिय कानूनों को समाप्त करना।
  • महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाना।
  • पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
  • सांसदों की उपस्थिति अनिवार्य करना।
  • चुनावी चंदे की जानकारी सार्वजनिक करना।
  • विशेषज्ञों की मदद से नीतियाँ बनाना।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्र. विधायिका क्या है?
उ: सरकार का वह अंग जो कानून बनाने के लिए जिम्मेदार होता है।

प्र. कार्यपालिका और विधायिका में क्या अंतर है?
उ: विधायिका कानून बनाती है, कार्यपालिका उन्हें लागू करती है।

प्र. विधायिका के प्रकार कौन-कौन से हैं?
उ: एकसदनीय और द्विसदनीय।

प्र. भारत में संसद में कौन-कौन शामिल हैं?
उ: लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति।

प्र. लोकसभा और राज्यसभा में कौन अधिक शक्तिशाली है?
उ: लोकसभा, क्योंकि सरकार उसी के बहुमत से बनती है और वित्तीय विधेयक वहीं से प्रारंभ होते हैं।

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